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न खेतों में और न ही जंगल में सुरक्षित हैं बाघ

 न खेतों में और न ही जंगल में सुरक्षित हैं बाघ

बाघों के मिल रहे शवों ने बढ़ाई चिंता, बाघों की आबादी स्थिर होने की आशंका

बाघों की लोकेशन जानकर उनके शिकार की टोह में रहते हैं शिकारी

बांकेगंज। तराई क्षेत्र में बाघ न तो खेतों में सुरक्षित हैं और न ही अपने प्राकृतिक घर जंगल में। शिकारियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि गन्ने के खेतों में रहने वाले बाघ तो उनके निशाने पर हैं ही, जंगल के अंदर भी शिकारी बेखौफ होकर शिकार कर रहे हैं। यहां बता दें कि दुधवा टाइगर रिजर्व में वर्ष 2018 की गणना के मुताबिक कुल 107 बाघ हैं। पिछले एक साल के अंदर अकेले खीरी में चार बाघ और एक तेंदुए की मौत हो चुकी है।

हाल ही में किशनपुर सेंक्चुरी में एक बाघ की मौत भले ही बीमारी या किसी अन्य कारण से हुई हो, लेकिन दक्षिण खीरी वन प्रभाग की महेशपुर रेंज के डोकरपुर गांव के पास बाघ का शव मिलने की बात हो या दुधवा टाइगर रिजर्व बफरजोन के मैलानी रेंज की जटपुरा बीट से सटे हरदुआ गांव के पास बाघिन की मौत का मामला, सभी में शिकारियों की संलिप्तता जाहिर होती है। इससे पहले दुधवा नेशनल पार्क की बेलरायां रेंज में शिकारियों ने एक बाघ का शिकार किया। शिकारियों के पकड़े जाने पर उनके पास से बाघ के नाखून और कई कीमती अंग बरामद हुए।

पिछले एक साल के अंदर दुधवा टाइगर रिजर्व समेत पूरे तराई के जंगलों में बड़ी संख्या में बाघों की अस्वाभाविक मौतें हुई हैं। हालांकि वन विभाग शिकार के मामलों को हमेशा नकारता आया है, लेकिन जिस तरह से बाघों की मौतें हो रही हैं इससे शिकार की बात को नकारा नहीं जा सकता।

धारियों का मिलान है बाघों की पहचान

दुधवा टाइगर रिजर्व के अफसरों के मुताबिक, जंगल में रहने वाले बाघों की गणना कैमरा ट्रैपिंग के जरिए की जाती है। इन कैमरों में कैद होने वाले बाघों की तस्वीर देहरादून स्थित टाइगर सेल भेजी जाती है। जहां वैज्ञानिक प्रत्येक बाघ की धारियों का अलग-अलग मिलान करके उसका डेटा एकत्र कर सुरक्षित करते हैं। जंगल के अंदर या बाहर किसी बाघ की मौत होने पर स्थानीय वनाधिकारी मृत बाघ की तस्वीर टाइगर सेल को भेज देते है। जहां इनकी धारियों के मिलान से इस बात का पता चल जाता है कि मृत बाघ किस जंगल का है, लेकिन गन्ने खेतों में रहने वाले बाघों की गणना नहीं की जाती। जिससे खेतों में रहने वाले बाघों की मौत होने पर उसकी धारियों का मिलान न होने से इस बात का पता ही नहीं चल पाता है कि मृत बाघ किस जंगल का है।

हाल ही में किशनुपर सेंक्चुरी में मृत मिले बाघ की धारियों का जब मिलान कराया गया तो वह दुधवा का ही निकला, लेकिन मैलानी रेंज की जटपुरा बीट में मिला बाघिन का शव हो या दक्षिण खीरी वन प्रभाग के महेशपुर रेंज के डोकरपुर गांव में करंट से बाघ की मौत का मामला, इन दोनों बाघों की धारियों का जब मिलान कराया गया तो उनकी धारियां जंगल में रहने वाले बाघों से नहीं मिलीं। संवाद

बाघों या दूसरे वन्यजीवों की मौत एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। जहां तक शिकार की बात है वन विभाग पूरी मुस्तैदी और सतर्कता के साथ बाघों की सुरक्षा में लगा हुआ है। - संजय पाठक, मुख्य वन संरक्षक/ फील्ड निदेशक, दुधवा टाइगर रिजर्व


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