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होली पर रहें सावधान, मिलावटी रंग और गुलाल से बचकर खेलें होली

 


लखीमपुर खीरी। होली हो और रंग न हो, ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता। मगर रंग हर्बल हैं और बिना मिलावट के हैं तो खेलने में कोई बुराई भी नहीं है। यदि ये रंग मिलावटी हैं तो त्वचा से लेकर आंख तक के लिए घातक हो सकते हैं। इसलिए होली खेलें मगर सावधानी के साथ।

गुलाल सामान्य तौर पर अरारोट में रंग मिलाकर तैयार किया जाता है। इस समय थोक बाजार में इसकी कीमत 45 रुपये प्रति किलोग्राम है, लेकिन इसमें भी मार्बल डस्ट मिलाई जा रही है। ऐसे में इसकी कीमत बहुत कम हो जाती है। मार्बल डस्ट का गुलाल थोक बाजार में दस रुपये प्रति किलोग्राम बिकता है। इसके इस्तेमाल से त्वचा छिल सकती है। दूसरी ओर थोक बाजार में शुद्ध रंग एक हजार रुपये प्रति किलोग्राम से भी महंगा है, लेकिन कई दुकानों पर यह 150 रुपये प्रति किलोग्राम में बिक रहा है। इसके पीछे असली कारण ग्लूकोज पाउडर है। ग्लूकोज पाउडर को रंग में मिलाकर रंग की मात्रा को बढ़ा दिया जाता है। रंग कोई भी हो, केमिकल के आपस में कराए गए रिएक्शन से बनाया जाता है। खतरनाक केमिकल मिलाकर उन्हें ज्यादा चटख बनाया जाता है।
खासतौर पर नीला, बैंगनी और हरा रंग। ये रंग ढेले के रूप में मिलते हैं। इनसे कैंसर तो हो ही सकता है, चर्म रोग, अस्थमा, बालों के झड़ने जैसी समस्याएं भी होती हैं। क्योंकि इनमें लेड ऑक्साइड, कॉपर सल्फेट जैसे खतरनाक केमिकल मिले होते हैं। इनका सीधा असर स्वास्थ्य पर पड़ता है। गहरे रंगों का संबंध ऑक्यूलर टॉक्सिसिटी से होता है, जो आंखों को नुकसान पहुंचाते हैं। आंखों में खुजली, पानी आना, जलन हो सकती है। रंगों में एसिड और केमिकल की वजह से त्वचा संबंधी एलर्जी होती है। ज्यादा लाभ कमाने के लिए रंग हो या गुलाल, सभी में मिलावट की जाती है। इसलिए रंग और गुलाल की खरीददारी बेहद सावधानी से करें।
इनका उपयोग है सुरक्षित
लाल रंग के लिए पलाश और टेसू के फूलों का उपयोग करना चाहिए। टेसू का फूल सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। ये फूल रंग बाजार में भी मिलते हैं और इन्हें एक दिन पहले चूने में मिलाकर नारंगी रंग बनाया जा सकता है। हरसिंगार के फूलों को सुखा कर उसे उबालकर नारंगी रंग बनाया जा सकता है। चुकंदर को अच्छे से घिसकर उससे भी लाल रंग बना सकते हैं।
रंगों में पड़ने वाले केमिकल और उसका दुष्प्रभाव
- हरा रंग कॉपर सल्फेट से बनता है, जिससे आंखों में खुजली हो सकती है।
- बैंगनी रंग क्रोमियम आयोडाइड से बनता है, जिससे अस्थमा या एलर्जी हो सकती है।
- सिल्वर रंग एल्युमिनियम ब्रोमाइड से बनता है, जिससे कैंसर हो सकता है।
- काला रंग लेड ऑक्साइड से बनाया जाता है। इससे किडनी प्रभावित होती है। साथ ही दिमाग पर असर होता है।
- लाल रंग मरक्यूरी सल्फेट से बनता है। इससे स्किन कैंसर, लकवा, नेत्र रोग हो सकते हैं।
गुलाल के रंग में केमिकल और उससे होने वाली बीमारी
- लाल गुलाल: इसमें मरकरी सल्फाइट का मिश्रण होता है। इससे स्किन कैंसर हो सकता है।
- हरा गुलाल: इसमें कॉपर सल्फेटसल्फेट होता है, जो आंखों में जलन पैदा करता है।
- काला गुलाल: इसमें लेड ऑक्साइड मिला होता है। मुंह के जरिए यह पेट में चला गया, तो गुर्दे खराब हो सकते हैं।
- नीला गुलाल: इसमें प्रूशियन ब्लू होता है, जिससे त्वचा का संक्रमण हो सकता है।
- चमकने वाले गुलाल: इनमें एल्युमिनियम ब्रोमाइड होता है, जिससे कैंसर हो सकता है।
रंगों और गुलाल में मिलावट की नहीं होती जांच
खाद्य सुरक्षा औषधि प्रशासन विभाग खाद्य पदार्थों, दवाओं और कॉस्मेटिक वस्तुओं की जांच तो कराता है, लेकिन रंग-गुलाल की जांच नहीं करता। इसके अलावा कोई अन्य विभाग भी रंगों की जांच नहीं कराता है। इससे मिलावटखोरी पर अंकुश लगाना नामुमकिन ही लगता है। ड्रग इंस्पेक्टर सुनील रावत ने बताया कि रंग-गुलाल की जांच के संबंध में अभी तक शासन से कोई निर्देश नहीं मिले हैं और न ही कोई अन्य विभाग ही इस कार्य के लिए अधिकृत है।
बाजार में बिक रहे ज्यादातर रंग और गुलाल में कई तरह के केमिकल मिलाए जाते हैं, जो शरीर के लिए घातक होते हैं। रंगों को चमकीला बनाने के लिए खतरनाक केमिकल प्रयोग किया जाता है, जिससे त्वचा संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। आंखों को नुकसान होने के अलावा कैंसर जैसा जानलेवा रोग हो सकता है। इसलिए सुरक्षित हर्बल रंगों का इस्तेमाल करें। सस्ते रंग-गुलाल खरीदने से बचें।
- डॉ. अमित सिंह, सीनियर मेडिकल ऑफिसर