बंगालः ममता को आखिर 29 सीटों को छोड़ सिर्फ नंदीग्राम पर ही क्यों करना पड़ा फोकस?
अब हम आपको इन 30 सीटों का चुनावी गणित भी बता देते हैं. 2016 के चुनाव में इन सीटों पर टीएमसी का दबदबा था और 30 में से 21 सीटें टीएमसी ने जीती थीं. बीजेपी को सिर्फ एक सीट मिली थी, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में तस्वीर थोड़ी बदल गई. इन 30 सीटों पर बढ़त के मामले में टीएमसी 21 से घटकर 18 पर आ गई और बीजेपी एक सीट से 12 सीट की बढ़त पर आ गई.
यानी टीएमसी को भले ही बहुत ज्यादा नुकसान नहीं हुआ. लेकिन बीजेपी ने बड़ी छलांग लगाई. और इस इलाके में 2019 की इसी छलांग ने ममता बनर्जी को बेचैन कर दिया था. इसी की वजह से ममता बनर्जी ने नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का चैलेंज लिया और बीजेपी ने उनके सामने शुभेंदु अधिकारी को उतार दिया. जो 14 साल तक ममता बनर्जी के करीबी रहे हैं और जिनका 20 साल से इस इलाके में दबदबा है.
इसीलिए नंदीग्राम का चुनावी मुकाबला सुपरहिट है. अब सवाल ये है कि क्या दीदी अपने इस बड़े चैलेंज को पूरा करेंगी? या फिर शुभेंदु अधिकारी को सामने करके बीजेपी ने ममता बनर्जी को जिस तरह से नंदीग्राम में घेरा है, क्या उस घेराबंदी में दीदी के खिलाफ बीजेपी कामयाब हो पाएगी?
पूरी कोशिश में बीजेपी
नंदीग्राम में प्रचार करने पहुंचे अमित शाह ने कहा कि इस जुलूस को देखकर कितना कॉन्फिडेंट फील कर रहे हैं निश्चित तौर पर नंदीग्राम सीट पर शुभेंदु अधिकारी बड़े मार्जिन से जीतने जा रहे हैं और यहां बीजेपी का परचम फहराने वाला है. ये लगभग तीन किलोमीटर लंबी पद यात्रा है और आखिरी दिन जब बीजेपी भी पूरा ज़ोर झोंक रही है.
ममता बनर्जी ने प्रचार के अंतिम दिन की शुरुआत पदयात्रा से की और वो भी शहीद वेदी जहां 2007 में जो लोग मारे गए थे.बंगाल की असली लड़ाई देखना है तो नंदीग्राम में देखिए. एक ही सीट पर कब आपने देखा कि एक ही दिन और करीब-करीब एक ही समय ममता बनर्जी भी प्रचार कर रही हैं और उसी दिन अमित शाह भी वहीं पर पहुंच गए.
तीन दिन से नंदीग्राम में ममता
ममता बनर्जी तीन दिन से नंदीग्राम में डटी हैं. व्हीलचेयर पर बैठकर आठ-आठ किलोमीटर के रोड शो कर चुकी हैं. तीन दिन में कम से कम 7 जनसभाएं कर चुकी हैं. बीजेपी इसे दीदी की बेचैनी बता रही है. लेकिन बात ये भी है कि नंदीग्राम में ममता पूरा ज़ोर क्यों नहीं लगाएंगी. जब शुभेंदु अधिकारी के सामने ये उनके लिए नाक की लड़ाई है.
नंदीग्राम का बड़ा चैलेंज तो ममता बनर्जी ने भवानीपुर की पुरानी सीट छोड़कर खुद लिया है. और उनके इस फैसले के बड़े चुनावी मायने भी हैं क्योंकि नंदीग्राम आंदोलन ने ही 14 साल पहले उन्हें सत्ता का रास्ता दिखाया था. उसी आंदोलन में उनके साथी रहे शुभेंदु अधिकारी अब दीदी के सियासी दुश्मनों से मिल गए.
ममता बनर्जी प्रचार के दौरान कहती हैं कि शुभेंदु अधिकारी गद्दार हैं गद्दारों को सबक सिखाएंगे. अब ममता बनर्जी नंदीग्राम में यही इमोशनल कार्ड खेल रही हैं. और इस कार्ड को दीदी अपने व्हीलचेयर कैंपेन से रिचार्ज भी कर रही हैं, लेकिन दीदी के भावुक प्रचार की काट बीजेपी ने भी अपने धुआंधार प्रचार से निकाली. जिसमें आखिरी दिन स्टार प्रचारक मिथुन चक्रवर्ती भी नंदीग्राम पहुंच गए.
नंदीग्राम में दीदी को हराने के लिए बीजेपी ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को नंदीग्राम में शुभेंदु के लिए रणनीति बनाने भेजा गया है. शुभेंदु अधिकारी भी खुद को 200 परसेंट कॉन्फिडेंट बता रहे हैं.
ये नंदीग्राम में आर या पार की लड़ाई है. अगर बीजेपी ने यहां दीदी को हरा दिया तो समझो बंगाल जीत लिया. और दीदी ने बीजेपी के हर दांव के बाद भी नंदीग्राम जीत लिया तो समझो बंगाल की आधी लड़ाई जीत ली.
ममता बनर्जी पहले कोलकाता की भवानीपुर सीट से चुनाव लड़ती थी. लेकिन इस बार उन्होंने नंदीग्राम को चुना है तो इसके पीछे बड़ा कारण उन्हें अपनी फाइटर इमेज को फिर से दिखाना है. और शुभेंदु अधिकारी जैसे उन नेताओं को सबक सिखाना है, जिन्होंने चुनाव से पहले ममता बनर्जी का साथ छोड़ दिया और बीजेपी के पास चले गए.
लेकिन शुभेंदु अधिकारी का भी इस इलाके में बहुत दबदबा है. उनके पिता और भाई सांसद हैं. वो खुद सांसद रहे हैं. नंदीग्राम से वो पिछली बार 81 हजार वोट से जीते थे. इस बार बीजेपी भी उनके साथ है. शुभेंदु अधिकारी के लिए बीजेपी ने पूरा जोर लगाया है. और खास रणनीति से ममता बनर्जी की घेराबंदी की है.
वैसे तो बंगाल में किसी भी जगह से ममता बनर्जी जैसी बड़ी नेता चुनाव लड़ें तो उनके लिए मुश्किल नहीं होगी. लेकिन नंदीग्राम में दीदी के लिए राह इतनी भी आसान नहीं है. उनके सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं. और इनमें ममता बनर्जी किस तरह से फंसी हैं.
नाराजगी का क्या जवाब
ममता बनर्जी ने दूसरे चरण की 29 सीटें छोड़कर सिर्फ नंदीग्राम पर फोकस किया है. तो ये इसीलिए कि बीजेपी ने दीदी के लिए नंदीग्राम का चुनाव मुश्किल बनाने में कसर नहीं छोड़ी.
दीदी के सामने शुभेंदु अधिकारी हैं. जिनके परिवार का ये गढ़ है. प्रचार के आखिरी दिन खुद गृह मंत्री अमित शाह नंदीग्राम पहुंच गए. मिथुन चक्रवर्ती को भी आखिरी दिन नंदीग्राम बुला लिया गया. केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान एक हफ्ते से वहां पूरी रणनीति देख रहे हैं.
लेकिन बात सिर्फ ममता बनर्जी के खिलाफ इस धुआंधार प्रचार की नहीं है. नंदीग्राम में ममता बनर्जी के लिए जो दो बड़ी चुनौती है. उनमें पहली चुनौती ये कि वोटों के ध्रुवीकरण को कैसे रोकेंगी. और दूसरी चुनौती ये कि सरकार के खिलाफ नाराजगी का जवाब क्या है?
नंदीग्राम के पिछड़ेपन और टीएमसी से नाराज़गी का ठीकरा तो दीदी शुभेंदु अधिकारी पर फोड़ रही हैं. जो पिछली बार यहीं से जीते थे. और दीदी की सरकार में मंत्री भी बने थे. शुभेंदु की यही बातें याद दिलाकर ममता बनर्जी नंदीग्राम में अपने वोट मांग रही हैं. लेकिन दीदी शुभेंदु अधिकारी और बीजेपी की एक और रणनीति में फंसी हैं.
आते-आते जय श्री राम पर हुआ प्रचार
ये रणनीति है नंदीग्राम में जय श्री राम के नारों पर हिंदुत्व की राजनीति का और ममता बनर्जी को हिंदू विरोधी साबित करने का. यही ममता बनर्जी के लिए बहुत बड़ी परेशानी है. प्रचार के आखिरी दिन ममता बनर्जी के कैंपेन के दौरान नंदीग्राम में कम से कम दो जगहों पर उनके सामने जय श्री राम के नारे लगे. शुभेंदु अधिकारी का पूरा प्रचार ही जय श्री राम के नारे पर चला है.
शुरुआत में शुभेंदु अधिकारी और बीजेपी के कैंपेन में ममता बनर्जी पर तोलाबाजी, चिट फंड और कट मनी पर हमले हो रहे थे. लेकिन ये मुद्दा पीछे छूट गया और शुभेंदु अधिकारी के कैंपेन में बार-बार ममता बनर्जी के लिए फूफी, खाला, बेगम, बंगाल के मिनी पाकिस्तान बन जाने और नंदीग्राम को जेहादियों से बचाने जैसी बातें होने लगीं.
बंगाल चुनाव में पाकिस्तान की बातें होने से हिंदु-मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण का खतरा ममता बनर्जी को भी बेचैन कर रहा होगा क्योंकि नंदीग्राम का चुनावी समीकरण कुछ ऐसा है कि ये विधानसभा दो ब्लॉक में बंटी है. एक ब्लॉक में करीब 34-35 फीसदी मुस्लिम हैं. और दूसरे ब्लॉक में करीब 10 से 12 फीसदी मुस्लिम हैं.
पूर्वी मिदनापुर की 16 सीटों में अकेली नंदीग्राम सीट ऐसी हैं, जहां पर कुल मिलाकर 34 फीसदी मुस्लिम हैं और बाकी जगहों पर मुस्लिम आबादी 20 प्रतिशत से कम है. यहां प्रभावशाली मुस्लिम चेहरे टीएमसी के साथ हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव के हिसाब से देखें तो नंदीग्राम सीट उन पांच विधानसभा सीटों में एक थी जहां टीएमसी को 68 हज़ार से ज़्यादा वोटों की बढ़त मिली थीं.
ध्रुवीकरण का खतरा
ममता के मुस्लिम सपोर्ट को ही बीजेपी ने अपना हथियार बनाया और उन्हें हिंदू विरोधी साबित करने में जोर लगाया, लेकिन नंदीग्राम में पहले दिन ही ममता बनर्जी ने कह दिया था कि बीजेपी का ये कार्ड नंदीग्राम में नहीं चलेगा.
ममता बनर्जी ने वोटों के ध्रुवीकरण के खतरे को समझा और इसीलिए वो नंदीग्राम में पहले दिन से ही मंदिरों में जाने लगे थी. खुद को ब्राह्मण बताने लगी और चंडीपाठ करने लगीं थीं.
अब इन बातों का कितना फायदा नंदीग्राम में ममता बनर्जी को मिलेगा. और कितना वो ध्रुवीकरण की चुनौती को काउंटर कर पाएंगी. इसी से नंदीग्राम का चुनावी नतीजा तय होगा.